
बदनसीबी
मुझे जिन्दगी ने रुलाया बहुत है,
मेरे दोस्त ने आजमाया बहुत है!
कोई आ के देखे मेरे घर की रौनक,
मेरा घर गमो से सजाया बहुत है!
हटा लो ये आँचल मुझे भूल जाओ,
सर पे बदनसीबी का साया बहुत है!
घर तो क्या मै ये शहर छोड़ जाऊं,
अजीजो ने मुझको समझाया बहुत है!
बरकत बहुत दी है मुझको खुदा ने.
धीर ने खोयाहै कम,गम पाया बहुत है!
dheerendra,"dheer"
बरकत बहुत दी है मुझको खुदा ने.
जवाब देंहटाएंधीर ने खोयाहै कम,गम पाया बहुत है! .... ग़म ना मिले तो असल ज़िन्दगी कहाँ .... बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल
न था हारा मैं धोखे औ बदनसीबी से
जवाब देंहटाएंसब हैं कमतर,इक अजीज़ ही बहुत है!
बहुत सुंदर गजल ..अच्छी प्रस्तुति .
जवाब देंहटाएंआपको तो उर्दू और हिंदी दोनों ही में महारत हासिल है।
जवाब देंहटाएंसुख साथ छोड़ जाता है, लेकिन दुःख तो अपना साथी है... बहुत सुन्दर ग़ज़ल... आभार
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है...बहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंbahut dard bhare udgaar............
जवाब देंहटाएंवाह ॥बहुत खूबसूर्ट गजल
जवाब देंहटाएंकोई आ के देखे मेरे घर की रौनक,
जवाब देंहटाएंमेरा घर गमो से सजाया बहुत है!
धीर भाई, आप अब अधीर क्यों होने लगे हैं । जिंदगी में जब तक गमों का आवागमन लगा रहेगा,तभी तो आप फुर्सत में अतीत में जिए हुए लमहों को जी पाएगें । इस दुमिया में कोई न कोई चीज ऐसी है जो हमें गम में भी एक सुखद सहारा दे देती है । आपके पोस्ट पर आना बहुत ही अच्छा लगा । धन्यवाद ।
वाह ! वाह !!
जवाब देंहटाएंवाह...:) Plz Visit:- Hindi4Tech
जवाब देंहटाएंवाह भाई जी |
जवाब देंहटाएंजबरदस्त भाव ||
यूँ तो मुहब्बत किया जान देकर-
मगर ख़ुदकुशी ने रुलाया बहुत है |
अगर गम गलत कर न पाए हसीना-
खिला गम को पानी पिलाया बहुत है ||
दिखी तेरे होंठो पे अमृत की बूँदें -
जिद्दी को तूने जिलाया बहुत है ||
तड़पते तड़पते हुआ लाश रविकर-
ज़रा ठोकरों से हिलाया बहुत है ||
गाया गजल गुनगुनाया गुनाकर -
सूना मर्सिया तुने गाया बहुत है ||
कोई आ के देखे मेरे घर की रौनक,
जवाब देंहटाएंमेरा घर गमो से सजाया बहुत है!
ज़नाब धीर साहब दिल के तारों को साँसों की धौंकनी सरगम को सीधे छूती है यह ग़ज़ल .हर अशआर कीमती .बधाई स्वीकार करें .
ram ram bhai
शुक्रवार, 18 मई
ऊंचा वही है जो गहराई लिए है
शाश्वत सत्य यही है .
कोई आ के देखे मेरे घर की रौनक,
जवाब देंहटाएंमेरा घर गमो से सजाया बहुत है!
....बहुत खूब! बेहतरीन गज़ल....
बहुत ग़मगीन ग़ज़ल लिखी है दिल को छू गई
जवाब देंहटाएंहटा लो ये आँचल मुझे भूल जाओ,
जवाब देंहटाएंसर पे बदनसीबी का साया बहुत है!
घर तो क्या मै ये शहर छोड़ जाऊं,
अजीजो ने मुझको समझाया बहुत है!
प्रिय धीरेन्द्र जी सुन्दर गजल ...ये जिन्दगी हर कुछ दे जाती है जब गम न मिले तो परीक्षा कहाँ ?
भ्रमर ५
bahut khoob sir
जवाब देंहटाएंThanks
http://drivingwithpen.blogspot.in/
घर तो क्या मै यह शहर छोड़ जाऊं
जवाब देंहटाएंअजीजों ने मुझको समझाया बहुत है "
सुन्दर पंक्ति|अच्छी रचना के लिए बधाई |
आशा
मन की पीड़ा को उकेरती भावपूर्ण रचना .........
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे अच्छे से प्रयोग हैं इस ग़ज़ल में -- घर को ग़मों से सजाया बहुत है।
जवाब देंहटाएंहटा लो ये आँचल मुझे भूल जाओ,
जवाब देंहटाएंसर पे बदनसीबी का साया बहुत है!
बारहा पढने लायक ग़ज़ल .
बारहा पढने लायक ग़ज़ल .
जवाब देंहटाएंबरकत बहुत दी है मुझको खुदा ने.
जवाब देंहटाएंधीर ने खोयाहै कम,गम पाया बहुत है!
dil ko chhune wali bahut hi pyari gazal !
घर तो क्या मै ये शहर छोड़ जाऊं,
जवाब देंहटाएंअजीजो ने मुझको समझाया बहुत है!...
Great couplets...
.
कोई आ के देखे मेरे घर की रौनक,
जवाब देंहटाएंमेरा घर गमो से सजाया बहुत है!
मुझे हादसों ने रुलाया बहुत है ,
मेरा चैन छीनोगे अब तुम कभी न ,
यकीन यह भी मुझको दिलाया बहुत है .बढ़िया प्रस्तुति दिल के तारों को झंकृत करती .
यह बोम्बे मेरी जान (चौथा भाग )http://veerubhai1947.blogspot.in/
तेरी आँखों की रिचाओं को पढ़ा है -
उसने ,
यकीन कर ,न कर .
कृपया यहाँ भी पधारें -
दमे में व्यायाम क्यों ?
दमे में व्यायाम क्यों ?
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/05/blog-post_5948.html
अन्तेर्मन को छू गयी आप की रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर अति सुन्दर जनाब!
जवाब देंहटाएंवाह जी बढ़िया ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंउम्दा ग़ज़ल... बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंbahut sunder gazal......badhai.
जवाब देंहटाएंबरकत बहुत दी है मुझको खुदा ने.
जवाब देंहटाएंधीर ने खोया है कम,गम पाया बहुत है!
....bas man mein dheeraj ho to khone ka gam kam hota hai ..
kabhi khushi aati hai to gam bhi aate hai ...
bahut badiya
हुजूमे गम मेरी फितरत बदल नहीं सकते ,मैं क्या करूँ मुझे आदत है मुस्कुराने
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति है -कुछ बात है कि हस्ती मिटटी नहीं हमारी ,बरसों रहा है दुश्मन दौरे जहां हमारा ......इसी विचार का विस्तार लिए है यह रचना ....
ram ram bhai
बुधवार, 30 मई 2012
HIV-AIDS का इलाज़ नहीं शादी कर लो कमसिन से
http://veerubhai1947.blogspot.in/
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कब खिलेंगे फूल कैसे जान लेते हैं पादप ?
bahut sundar...
जवाब देंहटाएंbahut hi khoobsoorat aur shandaar
जवाब देंहटाएंnc post sr
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