रिश्वत लिए वगैर...
कविता नही सुनेगें,अब लिये दिये वगैर,
हम दाद नही देगें,कुछ खाए पिए वगैर!
श्रोता विहीन मंच को श्री हीन समझिए,
त्यौहार मुहर्रम हो,जैसे ताजिऐ बगैर!
क्या क्या न हुआ आज तक कविता के नाम पर
गजलें नही चलेंगी अब काफिऐ बगैर!
उत्तर की प्रतीक्षा में है एक प्रश्न यह भी
कवि क्यों नही सुनते कविता,पिए बगैर!
जीवन के हर क्षेत्र में रिश्वत है जरूरी
श्रोता ही फिर सहे क्यों "धीर"रिश्वत लिये बगैर!
DHEERENDRA,"dheer"
कविता नही सुनेगें,अब लिये दिये वगैर,
हम दाद नही देगें,कुछ खाए पिए वगैर!
श्रोता विहीन मंच को श्री हीन समझिए,
त्यौहार मुहर्रम हो,जैसे ताजिऐ बगैर!
क्या क्या न हुआ आज तक कविता के नाम पर
गजलें नही चलेंगी अब काफिऐ बगैर!
उत्तर की प्रतीक्षा में है एक प्रश्न यह भी
कवि क्यों नही सुनते कविता,पिए बगैर!
जीवन के हर क्षेत्र में रिश्वत है जरूरी
श्रोता ही फिर सहे क्यों "धीर"रिश्वत लिये बगैर!
DHEERENDRA,"dheer"
सुंदर....................
जवाब देंहटाएंआपको टिप्पणी रूपी रिश्वत भेंट कर रहा हूँ ।
ब्लोगर करेंगे टिपण्णी रिश्वत लिए बगैर .
जवाब देंहटाएंकविता नही सुनेगें,अब लिये दिये वगैर,
जवाब देंहटाएंहम दाद नही देगें,कुछ खाए पिए वगैर!
भाई साहब!
आपने राह दिखा ही दी है। अब टिप्पणी ......
!!!
??? (समझे)
वाह!
जवाब देंहटाएंतब तो दक्षिणा पक्की हो गई ना!
रिश्वत नस-नस में बहे, बेबस "धीर" शरीर ।
जवाब देंहटाएंश्रोता-पाठक एक से, प्यासे छोड़ें तीर ।
प्यासे छोड़ें तीर, तीर सब कवि के सहता ।
विषय बड़ा गंभीर, कभी न कुछ भी कहता ।
जाए टिप्पण छोड़, वाह री उसकी किस्मत ।
चाहे बांह मरोड़, धरो पहले कुछ रिश्वत ।
बिना दिए तो टीप भी नहीं मिलती...!
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंआपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 19-03-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
वाह ॥ रिश्वत ... पर तगड़ा व्यंग
जवाब देंहटाएंरिश्वत ..हर तरफ तू ही तू..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंहर तरफ़ रिश्वत ही रिश्वत...वाह!!!
:):) बढ़िया .... हर जगह रिश्वत का बोलबाला है
जवाब देंहटाएंक्या लेनेदेने का प्रभाव कविता में भी आगया |कविता बहुत अच्छी लगी |
जवाब देंहटाएंआशा
☺☺
जवाब देंहटाएंTiipani pahle vali nahin dikhi
जवाब देंहटाएंरिश्वत-मद नस-नस बहे, बेबस "धीर" शरीर ।
श्रोता-पाठक एक से, प्यासे छोड़ें तीर ।
प्यासे छोड़ें तीर, तीर सब कवि के सहता ।
विषय बड़ा गंभीर, कभी न कुछ भी कहता ।
जाए टिप्पण छोड़, वाह री उसकी किस्मत ।
चाहे बांह मरोड़, धरो पहले कुछ रिश्वत ।
वाह ...बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंwah...sah kaha aapne..rishwat ke bagair kahin bhi kaam nhi chalta
जवाब देंहटाएं:-))
जवाब देंहटाएंये सामजिक बुराई
ब्लॉग पर भी छाई.......
सर याद रखियेगा हमारी बिना नागा टिप्पणियों को.....
:-)
सादर.
नहीं हम कोई रिश्वत नहीं देंगें :)बहुत सुन्दर प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंआज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ. अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)
जवाब देंहटाएंकमाल की ग़ज़ल...बेहतरीन लेखन ..बधाई स्वीकारें
नीरज
जीवन के हर क्षेत्र में रिश्वत है जरूरी
जवाब देंहटाएंश्रोता ही फिर सहे क्यों "धीर"रिश्वत लिये बगैर!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति |
....बहुत सुन्दर और भावमयी प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंकविता नही सुनेगें,अब लिये दिये वगैर,
जवाब देंहटाएंहम दाद नही देगें,कुछ खाए पिए वगैर.
मजेदार !, क्या बात कही धीरेन्द्र जी,... हम भी नहीं देंगे...
वाह बहुत खूब ! इस हाथ दे ...उस हाथ ले !!!!
जवाब देंहटाएंमैंने टिप्पणी आकर दी ..देखिये रिश्वत लिए बगैर.
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना ..मजेदार रचना
कल 26/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
वाह! क्या खूब कही आपने.... :))
जवाब देंहटाएंबहुत खूब...
जवाब देंहटाएंhahahahaahaha!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना,बेहतरीन भाव अभिव्यक्ति, इस रचना के लिए आभार " सवाई सिंह "
जवाब देंहटाएंहम टिप्पणी भी क्यों दें
जवाब देंहटाएंरिश्वत लिए वगैर !
खाली पीली शुभकामनायें :-))
mast vyangyatmak prastuti!
जवाब देंहटाएंजय हो आपकी.
जवाब देंहटाएंक्या खूब लिखतें हैं आप.
आपका निराला अंदाज दिल चूरा लेता है.
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