गुरुवार, 17 मई 2012
बदनसीबी,.....
बदनसीबी
मुझे जिन्दगी ने रुलाया बहुत है,
मेरे दोस्त ने आजमाया बहुत है!
कोई आ के देखे मेरे घर की रौनक,
मेरा घर गमो से सजाया बहुत है!
हटा लो ये आँचल मुझे भूल जाओ,
सर पे बदनसीबी का साया बहुत है!
घर तो क्या मै ये शहर छोड़ जाऊं,
अजीजो ने मुझको समझाया बहुत है!
बरकत बहुत दी है मुझको खुदा ने.
धीर ने खोयाहै कम,गम पाया बहुत है!
dheerendra,"dheer"
शुक्रवार, 4 मई 2012
प्रिया तुम चली आना.....
प्रिया तुम चली आना
थक जाए जब नैन
तुम्हारी राह तकते तकते
निश दिन
पाए न चैन मनुवा
काहू ठौर पलछिन
सूना हो आँगन
सूनी हो गालियाँ
मुरझाई हो सब
आशा की कलियाँ
तब चली आना प्रिया तुम
ओढ़ धानी चुनर
नेह दर्पण में संवर
इठलाती, बलखाती
इन नैनों के द्वार,
DHEERENDRA,"dheer"
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