
न जाने क्यों,
जानकर भी, कि
गुजर रहा हूँ,
अनजान राहों में मै!
न जाने क्यों-
खुद से अनजान
बन जाता हूँ,मै
सोचता हूँ कि-
एक अलग
पहचान बनाऊ
इस दुनिया में मै-
मगर,जब जाता हूँ
दुनिया की उस भीड़ में
न जाने क्यों-?
खुद अपनी पहचान.
भूल जाता हूँ मै!
dheerendra,"dheer"