गुरुवार, 16 फ़रवरी 2012

तुम्हें हम मिलेगें...


तुम्हें हम मिलेगें...

जिन्दगीं में हमेशा नए लोग मिलेगें
कहीं ज्यादा तो कहीं कम मिलेगें,
एतबार सोच समझ कर करना
मुमकिन नहीं हर जगह तुम्हें हम मिलेगें,

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dheerendra,

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही भाव प्रवण कविता । मन को आंदोलित कर गयी । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार है । धन्यवाद ।

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  2. वाह, जरूरी नही हर वक्त तुम्हें हम मिलेंगे । क्या बात है ।

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  3. जिन्दगीं में हमेशा नए लोग मिलेगें
    कहीं ज्यादा तो कहीं कम मिलेगें,
    एतबार सोच समझ कर करना
    मुमकिन नहीं हर जगह तुम्हें हम मिलेगें,
    क्या बात है धीरेन्द्र जी.

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